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लेखनी कहानी -13-May-2022 हम दोनों

कभी वो भी दिन थे जब 
हम दोनों घंटों बतियाते थे 
हाथों में हाथ डाले हुए 
पार्क का चक्कर लगाया करते थे 
रात में छत पर बैठकर 
तारे गिना करते थे । 
तब ये मोबाइल नहीं था 
सिर्फ प्यार था हम दोनों के बीच 
सारी दुनिया की बातें करते थे 
मेरी हर बात पर तुम 
कितनी खुश हुआ करती थी 
मेरे सीने से लगकर 
सपनों की दुनिया में सैर करती थी । 

मगर अब समां एकदम बदल गया 
जबसे ये मोबाइल निगोड़ा 
हम दोनों की जिंदगी में आ गया 
अब हमारी दुनिया अलग अलग हो गई 
मैं अपने मोबाइल में खो गया 
और तुम अपने मोबाइल में खो गई 
तुम्हारी सोशल मीडिया की दुनिया 
मेरी दुनिया से एकदम अलग है 
दोनों में कोई तालमेल नहीं 
अब तो बातें किए हुए न जाने 
कितने दिन गुजर जाते हैं 
एक ही छत के नीचे रहते हुए हम दोनों 
अजनबी की तरह नजर आते हैं 
क्या इसके लिए केवल मोबाइल दोषी है ? 
कहीं ऐसा तो नहीं कि 
प्यार की गंगा जो अनवरत बहती थी
वह अब मरुस्थल बन गई है 
चाहतों का समंदर 
जो कभी उछालें मारता था 
अब सूख सा गया है 
वो हंसी ठिठोली की रिमझिम सी बारिश 
अब होनी बंद हो गई है 
अब हम दोनों 
हम नहीं रहे, मैं बन गए हैं । 

आओ , फिर से एक शुरुआत करें 
मोबाइल को कचरा पात्र में डालें 
और फिर से तारों की गिनती 
साथ साथ करें । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
13 5.22 

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12 Comments

Seema Priyadarshini sahay

14-May-2022 06:51 PM

बहुत खूब

Reply

Haaya meer

13-May-2022 09:56 PM

Amazing

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Shnaya

13-May-2022 09:05 PM

Very nice 👍🏼

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